Sunday, March 22, 2009

कामयाबी की राह में अब देहरी नहीं दीवार




देवेंद्र सिंह, ग्रेटर नोएडा गांव सादुल्लापुर की बेटियों के लिए कामयाबी की राह में घर की देहरी अब दीवार नहीं बनती। तभी तो यहां की नौ लड़कियां दिल्ली पुलिस में नाम रोशन कर रही हैं। उनकी प्रेरणास्रोत हैं अंतरराष्ट्रीय पहलवान और दिल्ली पुलिस की कांस्टेबल बबिता नागर। ग्रेटर नोएडा के इस गांव के बुजुर्ग जगन कहते हैं-खुशी की बात है कि गांव की लड़कियां अब पढ़ने लगी हैं। न केवल शिक्षा में उनका रुझान बढ़ा है, बल्कि गांव से बाहर निकलने और नौकरी करने की हिम्मत भी दिखाई है। दिल्ली से लगे होने के बावजूद बबिता से पहले गांव में किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिली थी। रूढि़वादी परंपराओं के बीच पली-बढ़ी बबिता आज गांव के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। भले ही अब बबिता अंतरराष्ट्रीय पहलवान के रूप में पहचानी जाती हों। लेकिन आठ साल पहले परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं थीं। पढ़ाई के साथ कुश्ती शुरू की तो आलोचना का शिकार हुई। घर से निकलना मुश्किल था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। बकौल बबिता उन्होंने हमेशा निंदा को चुनौती माना। पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी से प्रेरित होकर दिल्ली पुलिस में जाने का निर्णय लिया। उनका निश्चय था कि वह अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा बनेंगी। वर्ष 2001 में दिल्ली महिला पुलिस में भर्ती की परीक्षा पास की। फिर दक्षिण अफ्रीका में आयोजित अंडर-19 कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर नया मुकाम हासिल किया। अब सारे गांव को बबिता पर गर्व है। शायद ऐसे ही लोगों के लिए हरिवंशचय बच्चन लिख गए कि लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती..। गांव की लड़कियां उन्हीं के पदचिह्नों पर चल पड़ी हैं। वर्ष 2008 में गांव की छह अन्य लड़कियां दिल्ली पुलिस में चुनी गई। इनमें एक विवाहित भी है। पुलिस में अपना करियर बनाने पर अब लड़कियों की आलोचना नहीं हुई, बल्कि ग्रामीणों से सम्मान मिल रहा है। इनमें अमृता नागर संुदरी नागर, पूनम, शीतल और सविता का कहना है कि बबिता को देखकर उनच्ी इच्छाशक्ति मजबूत हुई। सविता कहती हैं- यह गांव की बदली हवा का असर ही है जो परिवार का सहयोग मिल सका।


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